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Bapu ka Sahitya


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كتاب نمط الحياة
المطور: Alok Agrawal
حر

गुरूदेव बापूजी (श्री प्रभाकर केशवराव मोतीवाले) का जन्म दिनांक 28 जुलाई 1947 श्रावण शुक्ल एकादशी के दिन इन्दौर, मध्यप्रदेश में हुआ। बाल्यावस्था से ही गुरूदेव दैविक गुणों से सम्पन्न होकर सबके आकर्षण का केन्द्र रहे। माता (श्रीमती सुलोचनाबाई) पिता (श्री केशवराव मोतीवाले) चार बहने एवं एक भाई के भरे-पूरे परिवार में रहते हुए अपने दायित्वों का भली भांति निर्वहन करते हुए गृहस्थाश्रम में रहते हुए ही कठिन साधना की ओर प्रवृत्त हुए। उन्हें आदिगुरू दत्तात्रय का इष्ट था। सूक्ष्म जगत की दिव्यात्माओं द्वारा गुरूदेव को सतत्‌ मार्गदर्शन प्राप्त होता रहा। मुद्रायोग में सिद्ध गुरूदेव ने खेचरी मुद्रा योग का मार्ग प्रशस्त कर लुप्तप्राय यौगिक क्रियाओं द्वारा नाथ सम्प्रदाय की परम्परा को आगे बढ़ाया हैं। आप अत्यंत अत्यंत सरल-सहज तथा सौम्य स्वभाव वाले थे। गुरूदेव परमात्म्यशक्ति से परिपूर्ण होते हुए भी अहंकार रहित रहे। आप अध्यात्म-शास्त्र के सभी योग यथा कर्मयोग, भक्तियोग, ज्ञान योग, ध्यान योग, क्रियाशक्तियोग आदि में पारंगत रहे। इन अलग-अलग विधाओं द्वारा उस परम तत्व तक पहुँचना ये आपके समान अधिकारी पुरूष द्वारा ही संभव हैं। आपके द्वारा ध्यानस्थ अवस्था में उत्कृष्ठ आध्यात्मिक साहित्य का सजृन हुआ हैं। उनका सभी के प्रति आत्मीयतापूर्ण व्यवहार उनकी विशेषता रही। उनके संपर्क में आने वाले सभी साधक-शिष्यों के संस्कारनाश एवं परम तत्व तक पहुँचाने हेतु वे अंतिम समय (देह त्याग) तक सक्रिय एवं प्रतिबद्ध रहे। अपने संपूर्ण जीवनकाल में उन्होंने तिरस्कृत-बहिष्कृत चेतनाओं के उत्थान हेतु अथक परिश्रम किया। देह के जीवन के अंतिम क्षण तक वे क्रियाशील रहे एवं सभी को निष्काम कर्म का संदेश देकर गये। उन्होंने अपने जीवन का लक्ष्य पूर्ण कर दिनांक 15 जनवरी 2015 कृष्णपक्ष, दशमि, मकर संक्रांति को ब्रम्ह मूहूर्त में हरिद्वार में अपने पंचभूतात्मक देह का त्याग कर उन्होने "संजीवन समाधि" ली। वे देह से कभी भी बाधित नहीं रहे अतः गुरूदेव की उपस्थिति आज भी हमारे समक्ष प्रकट रूप में हैं।



गुरूदेव बापूजी द्वारा रचित साहित्य प्रसाद इस APP में प्रस्तुत किया गया हैं।